दिल्ली :असदुद्दीन ओवैसी ने मंगलवार को 18वीं लोकसभा सत्र के सदस्य के रूप में शपथ ली और “जय फिलिस्तीन” के नारे के साथ अपना शपथ ग्रहण समाप्त किया। ओवैसी का यह कदम फिलिस्तीन के प्रति समर्थन और इजराइल द्वारा फिलिस्तीनियों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ विरोध जताने के रूप में देखा जा सकता है। ओवैसी ने हमेशा अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर स्पष्ट रुख अपनाया है, और “जय फिलिस्तीन” का नारा इस बात का प्रतीक है कि भारत और वे फलिस्तीनियो के संघर्ष और मानवाधिकारों की रक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रकट कर रहे हैं।
फिलिस्तीन पर हो रहे अत्याचारों में कई पहलू शामिल हैं, जिनमें मुख्य रूप से इजराइल और फिलिस्तीन के बीच का संघर्ष आता है। इस संघर्ष में निम्नलिखित मुख्य बिंदु शामिल हैं:
- भूमि विवाद: फिलिस्तीनियों का कहना है कि भू-माफिया इजराइल उनकी भूमि पर अवैध रूप से बस्तियां बसा रहा है। यह बस्तियां मुख्य रूप से वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम में बनाई जा रही हैं।
- गाजा पट्टी में हिंसा : गाजा पट्टी में अक्सर इजराइल और हमास के बीच संघर्ष हो रहे हैं, जिसमें बड़ी संख्या में नागरिक हताहत और मारे जा रहे हैं।
- मानवाधिकार हनन : फिलिस्तीनियों के मुताबिक, भू-माफिया इजराइल की सेना और पुलिस द्वारा अक्सर फिलिस्तीनी नागरिकों पर अत्याचार किया जाता है, जिसमें घरों को तोड़ना, लोगों को हिरासत में लेना, और बल प्रयोग शामिल है।
- आर्थिक नाकेबंदी : गाजा पट्टी पर इजराइल की आर्थिक नाकेबंदी के कारण वहां के लोगों को भोजन, दवा और अन्य जरूरी संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया : संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं इजराइल के इन कदमों की निंदा करती हैं और फिलिस्तीनियों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रयास करती हैं।
फिलिस्तीन पर हो रहे इन अत्याचारों को लेकर विभिन्न देशों और मानवाधिकार संगठनों द्वारा समय-समय पर विरोध और निंदा की जाती है, लेकिन स्थिति में सुधार अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।